भारत एक कृषि-प्रधान देश है, और यहां के किसानों के लिए प्रमुख स्रोत खेती है। समय के साथ, किसानों ने यह महसूस किया है कि पारंपरिक फसलों से उन्हें संतोषजनक आय नहीं मिल रही, इसलिए उन्हें कुछ नया करने की जरूरत है। इस संदर्भ में, ड्रैगन फ्रूट की खेती एक अद्भुत विकल्प बन गई है।
ड्रैगन फ्रूट, जिसे हिंदी में 'कमलम' कहा जाता है, एक विदेशी फल है, लेकिन अब यह भारत में सफलतापूर्वक उगाया जा रहा है। इस फल की एक खास बात है कि इसे ज्यादा पानी, रासायनिक उर्वरक, या कठोर मेहनत की आवश्यकता नहीं होती। इसका बाजार मूल्य अच्छा रहता है और इसके स्वाद और स्वास्थ्य लाभ इसे बहुत पसंद किया जाता है।2025 में Dragon Fruit Farming in India(ड्रैगन फ्रूट की खेती ) का चलन तेजी से बढ़ रहा है|
इस ब्लॉग में, हम विस्तार से चर्चा करेंगे कि भारत में 2025 तक ड्रैगन फ्रूट की खेती कैसे की जा रही है, इसकी लागत क्या है, इससे प्राप्त मुनाफा क्या है, और इसे बाजार में किस तरह बेचा जाएगा। साथ ही, सरकार की योजनाएं और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी भी शामिल की जाएगी।
Dragon Fruit Farming in India, ड्रैगन फ्रूट एक प्रकार का कैक्टस फल है, जिसका वैज्ञानिक नाम Hylocereus spp. है। इसे मुख्यतः दक्षिण अमेरिका, मैक्सिको और इजराइल जैसे देशों में उगाया जाता है, लेकिन अब भारत में भी इसकी खेती बड़े स्तर पर की जा रही है।
इस फल के तीन मुख्य प्रकार हैं:
सफेद गूदा
लाल गूदा
पीला गूदा
इनमें से सफेद और लाल गूदा वाली किस्में सबसे अधिक लोकप्रिय हैं क्योंकि उनकी उत्पादन क्षमता अच्छी होती है और बाजार में इनकी मांग अधिक रहती है। ड्रैगन फ्रूट न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि इसमें विटामिन C, फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट और खनिज भरपूर मात्रा में होते हैं, जिससे यह एक हेल्दी डाइट के लिए उपयुक्त बनता है।
भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती( Dragon Fruit Farming in India) की शुरुआत लगभग 2010 के आसपास हुई। शुरुआती दौर में कुछ ही किसानों ने इसे उगाया, लेकिन धीरे-धीरे इसकी संभावनाओं को देखते हुए अन्य किसानों ने भी इसे अपनाना शुरू कर दिया।
सरकार ने ड्रैगन फ्रूट की खेती को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं। 'कमलम मिशन' और बागवानी विभाग की विभिन्न योजनाओं ने किसानों को नर्सरी, ट्रेली सिस्टम और सिंचाई के लिए सब्सिडी प्रदान की है। 2025 तक, भारत के कई राज्यों में Dragon Fruit Farming की जा रही है, जैसे:
महाराष्ट्र
गुजरात
तेलंगाना
आंध्र प्रदेश
कर्नाटक
उत्तर प्रदेश
बिहार
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, जो किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं, उनकी आमदनी में औसतन 50% की वृद्धि देखी गई है। यह एक संकेत है कि भविष्य में यह फल किसानों के लिए लाभदायक हो सकता है।
यदि आप 2025 में Dragon Fruit Farming in India(भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती) शुरू करने की सोच रहे हैं, तो निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें:
ड्रैगन फ्रूट गर्म और अर्ध-शुष्क जलवायु में अच्छी तरह उगता है। इसे अधिक वर्षा या ठंड की आवश्यकता नहीं होती। मिट्टी के अनुसार, यह अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी में सबसे अच्छा उगता है।
तापमान: 20°C से 35°C के बीच
pH स्तर: 6 से 7 के बीच
पानी की आवश्यकता: थोड़ी, लेकिन नियमित
भारत में मुख्यतः तीन प्रकार की किस्में उपलब्ध हैं:
किस्म
रंग
विशेषता
Hylocereus Undatus
White Flesh
सबसे अधिक उगाई जाने वाली, उपज अधिक
Hylocereus Costaricensis
Red Flesh
सुंदर रंग, अधिक एंटीऑक्सीडेंट
Selenicereus Megalanthus
Yellow Skin
कम उपज लेकिन अधिक बाजार मूल्य
पौधों के लिए जमीन को समतल करके खाई बनानी है।
प्रत्येक पौधे को 2×2 मीटर की दूरी पर लगाएं।
एक एकड़ में लगभग 1700 पौधे लगाए जा सकते हैं।
मजबूत सहारे के लिए सीमेंट या लोहे के खंभों का उपयोग करें।
ट्रेली सिस्टम की मदद से पौधों को ऊपर बढ़ने दें।
ड्रैगन फ्रूट की खेती में सिंचाई का महत्व बहुत अधिक है। हालांकि यह पौधा कम पानी में भी रह सकता है, लेकिन अधिक उपज के लिए निरंतर सिंचाई आवश्यक है।
ड्रिप इरिगेशन सबसे प्रभावी तरीका है जिससे पानी की बचत होती है।
हर 7 से 10 दिनों में सिंचाई करें, गर्मियों में थोड़ी अधिक।
खरपतवारों को समय-समय पर हटाते रहें।
जैविक खाद और गोबर की खाद का उपयोग करें।
बीमारियों से बचाने के लिए नीम का तेल या जैविक कीटनाशकों का छिड़काव करें।
पौधों की साल में दो बार छंटाई करें ताकि नई शाखाएं विकसित हो सकें।
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ड्रैगन फ्रूट की खेती के पहले कुछ वर्षों में उत्पादन कम होता है, लेकिन जैसे-जैसे पौधा बढ़ता है, उपज में वृद्धि होती है।
वर्ष
प्रति पौधा उत्पादन
कुल उत्पादन/एकड़
अनुमानित आय (₹)
1
1-2 kg
1.5 टन
₹75,000
2
5-8 kg
5 टन
₹2,50,000
3+
10-15 kg
10-12 टन
₹5,00,000+
2025 में, ड्रैगन फ्रूट की कीमत बाजार में ₹100 से ₹200 प्रति किलो तक पहुंचने की संभावना है, जिससे यह लाभकारी फसल बनती है।
स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता के चलते लोग स्वस्थ फलों की मांग कर रहे हैं, जैसे ड्रैगन फ्रूट।
सरकारी योजनाएं, जैसे कमलम मिशन, बागवानी योजनाएं, और सब्सिडी भी किसानों को प्रोत्साहित करती हैं।
कम लागत और अधिक मुनाफा होने के कारण छोटे किसान भी इसे अपनाते हैं।
निर्यात की संभावनाएं भी बढ़ी हैं, जिससे विदेशी मुद्रा में वृद्धि हो रही है।
जैविक खेती का अनुकूल होना इसे ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन प्राप्त करने में सरल बनाता है।
ड्रैगन फ्रूट की बिक्री को सही तरीके से करने पर यह और भी लाभकारी बन सकती है। आजकल, किसान कई प्लेटफार्मों का उपयोग कर सकते हैं:
स्थानीय बाजारों में सीधे बिक्री
होटलों, रेस्टोरेंट, और सुपरमार्केट्स के साथ साझेदारी
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे Amazon, BigBasket और Kissangrowth. com
सोशल मीडिया के जरिए सीधे ग्राहकों से बिक्री का मॉडल
भारत सरकार ने किसानों के आर्थिक सशक्तिकरण और विविध फसलों को अपनाने के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। ड्रैगन फ्रूट की खेती से संबंधित प्रमुख योजनाएं हैं:
PMKSY (प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना) - ड्रिप इरिगेशन के लिए सब्सिडी
NHM (राष्ट्रीय बागवानी मिशन) - नर्सरी स्थापित करने और पौधारोपण के लिए आर्थिक सहायता
FPO/FPC की स्थापना – किसानों के सामूहिक समूह बनाकर विपणन
कोल्ड स्टोरेज और परिवहन के लिए सब्सिडी – फलों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए
Strengths (मजबूतियां)
Weaknesses (कमियां)
कम देखभाल की ज़रूरत
शुरुआत में निवेश अधिक
पानी की कम आवश्यकता
ट्रेली सिस्टम की ज़रूरत
अच्छी बाजार कीमत
बाजार में जानकारी की कमी
Opportunities (अवसर)
Threats (चुनौतियां)
जैविक खेती की माँग
मौसम में बदलाव की अस्थिरता
प्रोसेसिंग और निर्यात
कीट/रोग की जानकारी की कमी
Dragon Fruit Farming in India(भारत में 2025 में ड्रैगन फ्रूट की खेती) उन किसानों के लिए उत्तम विकल्प बन रही है, जो सीमित लागत के साथ अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं। इसकी खेती करना आसान है, इसकी पानी की जरूरत कम है, और इसे जैविक खेती के माध्यम से भी किया जा सकता है।
अगर किसान समझदारी से सही तकनीकों का उपयोग करें, तो यह फसल उन्हें आर्थिक स्थिरता और आत्मनिर्भरता की ओर ले जा सकती है।
आप इसे सिर्फ 1/4 एकड़ से शुरू कर सकते हैं और फिर बढ़ा भी सकते हैं।
हां, इसे जैविक खाद और कीटनाशकों के जरिए आसानी से उगाया जा सकता है।
गुजरात, महाराष्ट्र, और कर्नाटक इस क्षेत्र में सबसे आगे हैं।
हां, PMKSY और NHM जैसी योजनाओं के तहत सहायता उपलब्ध है।
पौधों के 8-12 महीने के बाद फल आना शुरू हो जाते हैं।
इसके लिए मंडी, ऑनलाइन प्लेटफार्म, सीधी बिक्री उपभोक्ताओं को, और होटलों जैसे कई विकल्प हैं।